SC Decision On Property Rights – अब वो जमाना गया जब बच्चे मां-बाप की संपत्ति तो ले लेते थे, लेकिन सेवा की जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लेते थे। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में ऐसा फैसला सुनाया है जिससे ऐसे बच्चों की नींद उड़ गई होगी। कोर्ट ने साफ शब्दों में कह दिया है – अगर कोई संतान अपने माता-पिता की सेवा नहीं करती, तो वह उस प्रॉपर्टी पर दावा नहीं कर सकती जो उन्हें दी गई है।
यह फैसला सिर्फ एक कानूनी निर्देश नहीं है, बल्कि एक सामाजिक चेतावनी भी है कि संपत्ति के साथ-साथ जिम्मेदारी भी जरूरी है। तो आइए जानते हैं इस पूरे फैसले का क्या मतलब है और इससे क्या बदल जाएगा।
क्या है पूरा मामला?
आजकल देखा जाता है कि बहुत से माता-पिता अपनी जिंदगी की कमाई अपने बच्चों के नाम कर देते हैं – कभी प्यार में, कभी समाज के दबाव में, तो कभी अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होने के लिए। लेकिन अक्सर होता क्या है? जैसे ही प्रॉपर्टी ट्रांसफर होती है, कुछ बच्चे पलट जाते हैं। मां-बाप को पूछते तक नहीं, न खाने-पीने की फिक्र, न दवाइयों की चिंता और न ही इमोशनल सपोर्ट।
इसी चिंता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा बयान दिया है – अगर कोई बच्चा अपने माता-पिता की देखभाल नहीं करता, तो वो उस संपत्ति को खो सकता है जो उसे दी गई है।
संपत्ति का हक सेवा से जुड़ा है
कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अब संपत्ति का हक सिर्फ नाम पर नहीं चलेगा। सेवा, देखभाल और भावनात्मक साथ ही असली योग्यता होगी। माता-पिता अगर ये साबित कर देते हैं कि बच्चा उनकी देखभाल नहीं कर रहा, तो वे उस संपत्ति को वापस ले सकते हैं – भले ही वो कानूनी रूप से ट्रांसफर हो चुकी हो।
कानून भी है माता-पिता के पक्ष में
आपको जानकर हैरानी होगी कि साल 2007 में ही सरकार ने एक कानून बनाया था – “वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम”। इसके तहत हर संतान पर ये कानूनी जिम्मेदारी है कि वह अपने माता-पिता का ख्याल रखे – चाहे वो आर्थिक हो, मानसिक हो या शारीरिक।
अगर कोई बच्चा इस जिम्मेदारी को निभाने से कतराता है, तो माता-पिता कानूनी रूप से संपत्ति का ट्रांसफर रद्द करवा सकते हैं। और अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद, ये नियम और भी मजबूत हो गया है।
अब प्रॉपर्टी ट्रांसफर भी शर्तों के साथ होगा
कोर्ट के इस आदेश के बाद माता-पिता भी सतर्क हो गए हैं। अब जब भी कोई अपनी संपत्ति बेटे-बेटी के नाम करेगा, तो वो एक शर्त के साथ करेगा – कि देखभाल की जिम्मेदारी निभाई जाएगी। इसमें सिर्फ दवाइयां देना ही नहीं, बल्कि साथ बैठना, समय देना और जरूरतों का ध्यान रखना शामिल होगा।
अगर बच्चे इनमें से किसी भी जिम्मेदारी को नहीं निभाते, तो माता-पिता कानूनी तौर पर उस प्रॉपर्टी को वापस लेने की कार्रवाई शुरू कर सकते हैं।
सामाजिक संदेश: सेवा अब मजबूरी नहीं, जरूरत है
ये फैसला सिर्फ कोर्टरूम तक सीमित नहीं है। इसका समाज पर भी गहरा असर पड़ेगा। कई जगह देखा जाता है कि जैसे ही प्रॉपर्टी बच्चों के नाम होती है, माता-पिता को बोझ मान लिया जाता है। ये सोच धीरे-धीरे बदलेगी, क्योंकि अब ये सिर्फ नैतिक नहीं, कानूनी जिम्मेदारी बन गई है।
बच्चों को समझना होगा कि मां-बाप ने उन्हें पाला है, तो अब उनकी बारी है। वरना न प्रॉपर्टी रहेगी, न सम्मान।
बुजुर्गों को अब डरने की जरूरत नहीं
इस फैसले ने लाखों बुजुर्गों को नई उम्मीद दी है। अगर आपके साथ ऐसा कुछ हो रहा है – आपने प्रॉपर्टी दी और अब आपके बच्चे आपका ख्याल नहीं रख रहे, तो अब आप आवाज उठा सकते हैं। आपको किसी बड़े वकील की जरूरत नहीं है – बस थोड़ी हिम्मत और जानकारी होनी चाहिए।
आप अपने जिले के वरिष्ठ नागरिक न्यायाधिकरण (Tribunal) में जाकर शिकायत दर्ज कर सकते हैं। वहां से तुरंत कार्रवाई हो सकती है और आपकी दी हुई प्रॉपर्टी आपको वापस मिल सकती है।
क्या सिखाता है यह फैसला?
इस फैसले से सबसे बड़ी सीख यह मिलती है कि संपत्ति के साथ सेवा भी जरूरी है। माता-पिता को अब अंधे विश्वास में प्रॉपर्टी ट्रांसफर नहीं करनी चाहिए। एक लिखित शर्तों वाला समझौता जरूरी है जिसमें साफ लिखा हो कि कौन क्या जिम्मेदारी निभाएगा।
और बच्चों को समझना चाहिए कि अगर वो अपने कर्तव्य से मुंह मोड़ेंगे, तो कानून भी उनका साथ नहीं देगा।
माता-पिता जीवनभर अपने बच्चों के लिए त्याग करते हैं। लेकिन अब समय है कि वे अपने अधिकारों को समझें और उसका इस्तेमाल करें। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला समाज को यह याद दिलाता है कि बुजुर्गों का सम्मान सिर्फ रीति-रिवाज नहीं, अब कानून की मजबूरी भी है।
अब हर संतान को ये बात गांठ बांध लेनी चाहिए – सेवा नहीं, तो संपत्ति नहीं।